सन् 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर के एक छोटे से मकान में केवल पाँच स्वयंसेवकों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की नींव रखी थी। उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि यह छोटी-सी लौ एक दिन विशाल सूर्य बन जाएगी और भारत के सामाजिक-राजनीतिक जीवन को नई दिशा देगी। आज 100 वर्ष पूरे करते हुए संघ विश्व की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संगठन के रूप में स्थापित है।
शुरुआत और उद्देश्य
संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक अस्मिता को पुनर्जीवित करना, समाज में संगठन की शक्ति भरना और राष्ट्रवाद की भावना को जागृत करना था। गुलामी के दौर में बिखरे हुए समाज को एक सूत्र में पिरोना, आत्मगौरव की भावना जगाना और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखना—यही संघ का मूल मंत्र रहा।
डॉ. हेडगेवार ने शाखा पद्धति की शुरुआत की, जहाँ खेल, व्यायाम, अनुशासन और राष्ट्रगीतों के माध्यम से समाज का संगठन किया गया। शाखा सिर्फ शारीरिक प्रशिक्षण का स्थल नहीं बल्कि चरित्र निर्माण, सेवा और राष्ट्र समर्पण की प्रयोगशाला थी।
संघ का विस्तार
आरंभ में कुछ ही स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुआ यह संगठन धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गया। शाखाओं की संख्या हजारों में पहुँची और स्वयंसेवक समाज के हर क्षेत्र में सक्रिय हुए। संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी) के समय में संघ ने वैचारिक और संगठनात्मक विस्तार पाया।
आज स्थिति यह है कि देशभर में लाखों शाखाएँ प्रतिदिन संचालित होती हैं और करोड़ों स्वयंसेवक संघ के कार्य में जुड़े हुए हैं।
राजनीति में योगदान
यद्यपि संघ का सीधा उद्देश्य राजनीति करना नहीं था, लेकिन संघ की प्रेरणा से अनेक सामाजिक और राजनीतिक संगठन अस्तित्व में आए। भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसी पृष्ठभूमि से निकली।
आज भारत के प्रधानमंत्री स्वयं संघ के संस्कारों से गढ़े हुए हैं। कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी संघ से निकले स्वयंसेवक हैं। यही नहीं, देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च constitutional पदों पर भी संघ से जुड़े लोग पहुँचे हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि 1925 में शुरू हुआ आंदोलन आज भारत की राजनीति, समाज और संस्कृति की मुख्यधारा में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है।
सामाजिक और सांस्कृतिक कार्य
संघ ने हमेशा समाज के निचले तबकों और वंचित वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ने पर बल दिया। समरसता, सेवा और संगठन के माध्यम से लाखों सेवाकार्य चलाए जा रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्राम विकास, पर्यावरण और स्वदेशी आंदोलन—हर क्षेत्र में संघ और उसकी प्रेरणा से खड़े हुए संगठनों ने उल्लेखनीय योगदान दिया है।
संघ की अनेक इकाइयाँ और सहयोगी संगठन हैं, जैसे—विश्व हिंदू परिषद, विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, विद्या भारती, संस्कार भारती आदि। ये संगठन समाज के विविध क्षेत्रों में कार्यरत हैं और भारत के सामाजिक ताने-बाने को सशक्त कर रहे हैं।
विपरीत परिस्थितियों में संघ
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान संघ के स्वयंसेवकों ने सक्रिय भागीदारी की। विभाजन के समय लाखों शरणार्थियों की सेवा संघ कार्यकर्ताओं ने की। आपातकाल (1975-77) के दौर में संघ पर प्रतिबंध लगाया गया, हजारों स्वयंसेवक जेलों में डाले गए, लेकिन संगठन और मजबूत होकर निकला।
इसी प्रकार हर विपत्ति—चाहे प्राकृतिक आपदा हो या सामाजिक अशांति—संघ कार्यकर्ता अग्रिम पंक्ति में दिखाई देते हैं। यही सेवा भावना संघ की असली ताकत है।
आज का संघ
100 वर्ष पूरे कर चुका संघ आज केवल एक संगठन नहीं बल्कि एक जीवंत विचारधारा है। “राष्ट्र प्रथम” की भावना से प्रेरित यह संगठन भारत को “विश्वगुरु” बनाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है।
आज भारत के राजनीतिक नेतृत्व में RSS की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति—सबका जीवन संघ के संस्कारों से प्रेरित है।
वैश्विक प्रभाव
भारत से बाहर भी संघ का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है। प्रवासी भारतीयों के बीच हिन्दू स्वयंसेवक संघ (HSS) कार्यरत है, जो सांस्कृतिक मूल्यों और भारतीय पहचान को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
संघ के 100 वर्ष: उपलब्धियों का सार
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1925 में एक छोटे से घर और 5-7 लोगों से शुरुआत।
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आज करोड़ों स्वयंसेवक और लाखों शाखाएँ।
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प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति संघ की पृष्ठभूमि से।
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शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवा और सांस्कृतिक जागरण में अनगिनत योगदान।
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विश्वभर में भारतीय संस्कृति का प्रसार।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने 100 वर्षों की यात्रा में यह सिद्ध कर दिया कि संगठन की शक्ति ही सबसे बड़ी पूंजी होती है। एक छोटा-सा बीज आज वटवृक्ष बन चुका है, जिसकी छाया में भारत अपनी नई पहचान गढ़ रहा है।
संघ का यह शताब्दी वर्ष केवल एक संगठन का नहीं, बल्कि राष्ट्र पुनर्जागरण का उत्सव है। आने वाले वर्षों में संघ का योगदान और भी व्यापक होगा और भारत को विश्वगुरु बनाने के सपने को साकार करने में यह संगठन केंद्रीय भूमिका निभाएगा।