छठ पूजा के गीतों कीमशहूर गायिका और भारतीय लोक संगीत की एक अद्भुत शख्सियत शारदा सिन्हा का मंगलवार रात निधन हो गया। 72 वर्षीय शारदा सिन्हा पिछले कुछ समय से बीमार थीं और उनका इलाज दिल्ली के एम्स में चल रहा था। सोमवार को उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन उन्होंने नहाय-खाय के दिन अंतिम सांस ली। उनके बेटे अंशुमन सिन्हा ने सोशल मीडिया पर यह दुखद समाचार साझा किया, जिसने संगीत प्रेमियों और उनके प्रशंसकों को गहरे शोक में डाल दिया।
लोक संगीत को दी नई पहचान
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर, 1952 को बिहार के समस्तीपुर जिले के हुलास गांव में हुआ था। मैथिली, भोजपुरी और हिंदी में उनके द्वारा गाए गए छठ और विवाह गीतों ने उन्हें बिहार की कोकिला की उपाधि दिलाई। “दुखवा मिटायिन छठी मइया” और “सुन-सुन बटोहिया” जैसे गीत घर-घर में बजते रहे हैं और छठ पूजा के समय हर दिल में गूंजते हैं। शारदा सिन्हा ने केवल छठ गीत ही नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा में भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा। उन्होंने 1989 में फिल्म “मैंने प्यार किया” में “कहे तो से सजना” गीत गाया, जिसे खूब सराहा गया।
सम्मान और पुरस्कार
शारदा सिन्हा का योगदान केवल गीतों तक सीमित नहीं था। उन्होंने लोक संगीत को वैश्विक मंच तक पहुँचाया। उन्हें 1991 में पद्म श्री और 2018 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से नवाजा गया। इसके अतिरिक्त, उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। शारदा सिन्हा की मधुर आवाज और सादगी भरी शैली ने उन्हें अन्य गायकों से अलग पहचान दिलाई।
शिक्षा और संगीत में योगदान
शारदा सिन्हा ने संगीत में गहराई से अध्ययन किया और पीएचडी की डिग्री हासिल की। उन्होंने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से संगीत में पीएचडी की और अपने ज्ञान को बिहार के कई कॉलेजों में पढ़ाया। इसके साथ ही, प्रयाग संगीत समिति और मगध महिला कॉलेज से भी उन्होंने संगीत प्रशिक्षण लिया। शिक्षा के प्रति उनके समर्पण और संगीत में गहराई से समझ ने उन्हें एक श्रेष्ठ शिक्षिका और संगीतकार के रूप में उभारा।
शारदा सिन्हा के पिता, सुखदेव ठाकुर, शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारी थे और उनके बड़े भाई चिदानंद शर्मा भी शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे। उनका परिवार उनके संगीत यात्रा में हमेशा उनके साथ रहा और उन्हें प्रोत्साहित किया। उनके पुत्र अंशुमन सिन्हा ने उनके अंतिम दिनों की जानकारी सोशल मीडिया पर दी, जिसमें उन्होंने अपने प्रशंसकों से माँ के लिए प्रार्थना करने का आग्रह किया था
- लोक संगीत का अनमोल क्षति
शारदा सिन्हा के निधन से लोक संगीत जगत में एक बड़ा खालीपन आ गया है। उनकी आवाज ने छठ महापर्व को एक अनोखी पहचान दी थी, जो अब उनके साथ ही मौन हो गई है। भारतीय लोक संगीत और छठ पूजा के गीतों के क्षेत्र में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उनके गीतों की धुनें आज भी लोगों के दिलों में गूंजती हैं और उन्हें संगीत की दुनिया में अमर बनाए रखेंगी।
शारदा सिन्हा के निधन से भारत ने न केवल एक महान गायिका को खोया है, बल्कि एक ऐसी धरोहर को भी खो दिया है जो लोक संगीत को हमेशा जीवित रखती थी।